🌺पतंजलि योग सूत्र🌺 🌲द्वितीय चरण🌲🌺अभ्यास का सम्मान🌹18🌹 कल से आगे...

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*🌺पतंजलि योग सूत्र🌺*

*🌲द्वितीय चरण🌲*

*🌺अभ्यास का सम्मान🌺*

*🌹🌹18🌹🌹*

*.....कल से आगे.....*

हमारा जीवन भी एक ऐसी ही यात्रा बन गया है जहाँ हम सतत् भागते रहते हैं किन्तु गन्तव्य कोई नहीं है। इच्छाओं का कार्य यही है। इच्छाओं से ग्रस्त मन ध्यानावस्था को प्राप्त नही कर सकता।
इस परिस्थिति में मनुष्य की दो प्रकार की मनोवृत्तियाँ होती है। कुछ लोगों के अनुसार मन में कोई इच्छा नहीं उतनी चाहिए अतः मैं कोई अभिलाषा करूंगा ही नहीं। यह स्वयं में इच्छा बन जाती है अर्थात् इच्छा को समाप्त कर दो। कुछ लोग अपनी इच्छाओं को नष्ट करने के पीछे पड़ जाते हैं वे व्यर्थ ही अपना समय नष्ट करते हैं। उन्हें कुछ  प्राप्त नहीं होता।
यह सिद्धांत भली भांति समझ लो कि इंद्रियसुख की लालसा अथवा किसी स्वर्गिक या दिव्य स्थान की परिकल्पना ध्यान में बाधक है। किसी भी प्रकार की अपेक्षा, ध्यान में व्यवधान उत्पन्न करती है। दुसरो के अनुभव में रौशनी (किरण) का दिखना, स्वर्ग से किसी का अवतरण और हाथ पकड़ कर अपने साथ ले जाना, यह सब सुनने के बाद तुम भी नेत्र बंद कर किसी परी के उतरने की अथवा रौशनी के दिखने की कामना करते हों और कल्पना करते हो की तुम भी अनगिनत तारों में शामिल हो गये। इस तरह के विचार ध्यान में बाधक है।
वैराग्य के अनुसार इन सब बातों पर ध्यान मत दो। तुम अगर भोग विलास को तिलांजलि नही देना चाहते, तो विलास और सुख की कामना तुम्हे दुःखी करती है क्योंकि सुख प्राप्ति का राग तुम्हे व्यथित रखता है। जब सुख की कामना नही करते तब मुक्त हो जाते हो और जब मुक्ति की भी कामना नही करते हो तब तुम प्रेम को प्राप्त करते हों। यह परम वैराग्य है इस अवस्था में तुम मोक्ष की भी कामना नही करते, यह दूसरा चरण है। पहले चरण में तुम्हे सुखों की इच्छा नही होती और तुम मोक्ष को प्राप्त होते हो।

*.....शेष कल....*
*दि आर्ट ऑफ लिविंग प्रक्षिक्षक - श्री विकाश कुमार स्नेही सह जिला समन्यवक ऑफ चतरा*
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