🌺पतंजलि योग सूत्र🌺 *🌲द्वितीय चरण🌲* 🌺अभ्यास का सम्मान🌺* 🌹20🌹
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*🌺पतंजलि योग सूत्र🌺*
*🌲द्वितीय चरण🌲*
*🌺अभ्यास का सम्मान🌺*
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*कल से आगे.....*
अगला सूत्र है।
*"तत्परम् पुरुष ख्यातेर्गुण वैतृष्णयम्।"*
एक बार परमानन्द की अनुभूति हो जाने पर गुणों एवं संसार का भय विलुप्त होने लगता है। जिस प्रकार मधुमेह का रोगी मिष्ठान्न से डरता है। खा लूँगा तो क्या होगा? मिठाई की ओर देखने से भी भय लगता है। वह उसके लिए वर्जित है। परन्तु मिठास है किसमें? यह बुद्धि ही तो मिठास का अनुभव कराती है। पदार्थ में कोई मिठास नही है। यह परम वैराग्य है। यह वैराग्य सर्वश्रेष्ठ है। भयभीत न होना। संसार से भागने की आवश्यकता नहीं है वरन पूरी तरह संसार में रहते हुवे भी उससे पूर्ण अनासक्त रहना। अनासक्त शब्द के प्रयोग की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह विकृत हो गया है। आत्मकेन्द्रित रहना बेहतर शब्द होगा।
आत्मज्ञान के विषय में बहुत हास्यास्पद धारणायें है। हर धर्म व संस्कृति के लोगों में अलग अलग प्रकार की धारणायें है। ईसाई धर्म की मान्यता के अनुसार, धनी व्यक्ति आत्म ज्ञानी नही हो सकता यह असंभव है। आत्म ज्ञानी होने के लिए निर्धन होना।आवश्यक है। ईसाई धर्म के अनुसार भगवान श्री राम आत्म ज्ञानी नही हो सकते क्योंकि वे तो राजा थे। एक ऊँट सुई के छिद्र के पार जा सकता है किन्तु धनी व्यक्ति आत्मज्ञानी नही हो सकता। मैं एक बार यात्रा में बेंगलौर के हवाई अड्डे पर खड़ा प्रतीक्षा कर रहा था। एक सज्जन मुझसे मिले जो ईसाई पादरी थे। वे मेरी ओर देखकर मुस्कुराये। प्रति उत्तर में मैं भी मुस्कुराया। वे मेरे समीप आये और बात करने की इच्छा जाहिर की बोले " तुम बहुत भद्र पुरुष जान पड़ते हो" फिर उन्होंने मुझसे पूछा! "क्या प्रभु ईसा मसीह में विश्वास करते हो। मैंने कहा "हाँ" ।पहले तो वे चौंक गये। उन्होंने पुनः पूछा "क्या सचमुच" मैंने कहा "हाँ" "किन्तु तुम तो हिन्दू हो"? "क्या नही हो?" मैंने कहा "सम्भवतः" "क्या तुम कृष्ण में विश्वास करते हो"? मैंने कहा "हाँ" मैं भगवान कृष्ण में भी विश्वास करता हूँ। फिर बोले "कृष्ण कैसे भगवान हो सकते हैं? वे तो माखन चोर थे, विवाहित थे। कोई विवाहित एवं माखन चुराने वाला व्यक्ति भगवान कैसे हो सकता है वह मोक्ष कैसे प्रदान कर सकता है। केवल ईसा मसीह ही एक मात्र मार्ग है। मैं भी पहले हिन्दू था जबसे ईसाई धर्म अपनाया है, सब मेरे अनुकूल हो रहा है। ईसा मसीह मेरा पूरा ख्याल करते हैं। मेरी मानो तुम भी ईसाई धर्म अपना लो"। यह सब कुछ उसने बड़ी निष्ठां और ईमानदारी से कहा। वह मेरा धर्म परिवर्तन करने का प्रयास करें रहा था।
जैन धर्म के अनुयायी भी ऐसा सोचते हैं कि श्री कृष्ण आत्मज्ञानी नही हो सकते क्योंकि महाभारत के युद्ध की पृष्ठभूमि उन्होंने ही रखी थी। वे कहते है कि "अर्जुन तो युद्ध से भाग रहा था, सन्यास लेना चाहता था परन्तु श्री कृष्ण ने ही तो अर्जुन का हृदय परिवर्तन किया और एक महायुद्ध करवाया। कृष्ण ही कुरुक्षेत्र के युद्ध के उत्तरदायी है। अतः वे कैसे आत्मज्ञानी हो सकते हैं? मक्खन चुराने एवं अनेक पत्नियों वाले व्यक्ति का आत्मज्ञानी होना असंभव है"। जैन धर्म के अनुसार आत्मज्ञानी को सन्यासी और निर्वस्त्र होना चाहिये। उनकी धारणा है कि उसे निर्वस्त्र ही भ्रमण करना चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते तो उनकी महानता में कमी है। कौन जाने कब क्या हो जाये? कौन सी इच्छा उठने लगे। वे वासना से रहित है या नहीं कैसे पता चलेगा? क्या प्रमाण है? अतः जैन साधू को निर्वस्त्र ही रहना होगा। वे कपड़े नही पहन सकते अर्थात् आत्मज्ञानी वे ही है जो ऐसा करते हैं। ऐसी उनकी मान्यता है। वे मानते हैं कि जो व्यक्ति भोजन भलीभाँति करे और भोजन का आनंद लेकर उसे समाप्त करे वह आत्मज्ञानी नही हो सकता। एक व्यक्ति मिष्ठान्न खा सकता है संत कदापि नहीं।
*शेष कल.....*दि आर्ट ऑफ लिविंग प्रक्षिक्षक - श्री विकाश कुमार स्नेही सह जिला समन्यवक ऑफ चतरा*🍁🍁🍁🍁🍁🍁
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