पतंजलि योग सूत्र-द्वितीय चरण
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*🌺पतंजलि योग सूत्र🌺*
*🌲द्वितीय चरण🌲*
*🌺अभ्यास का सम्मान🌺*
*🌹🌹17🌹🌹*
*.....कल से आगे.....*
*वैराग्य क्या है?*
कितना भी सुन्दर दृश्य हो परन्तु कुछ क्षणों के लिए उसे देखने में तुम्हारी कोई दिलचस्पी नहीं है। चाहे जितना भी स्वादिष्ट भोजन हो परन्तु उस समय उसे चखने में तुम्हारी रूचि नहीं होनी चाहिए। कितना भी मधुर संगीत हो किन्तु प्रतीज्ञा करो कि इस क्षण तुम्हे नही सुनना है। सौन्दर्य कितना भी मनमोहक हो उसके स्पर्श में तुम्हारी कोई रूचि नहीं होनी चाहिए। देखा तुमने! कुछ क्षणों के लिये ही इन्द्रियों के राग एवं भोग विलास की पिपासा से अपना मन हटा लेने को ही वैराग्य कहते हैं। ध्यान करने के लिए वैराग्य दूसरी मूलभूत आवश्यकता है। जब गहरे ध्यान के लिए बैठो, वैराग्य उत्पन्न होना ही चाहिये।
वैराग्य के अभाव में ध्यान व्यर्थ हो जाता है। बिना वैराग्य के किया गया ध्यान इच्छित विश्राम नही दे सकता। एक के बाद एक इच्छाओं के पीछे भागते भागते तुम्हारा मन थक कर, जल कर राख हो गया। मन क्लांत है। जरा मुड़ कर देखो सारी फलित इच्छाओं ने क्या तुम्हे विश्राम दिया है? नही। उन्होंने और नयी इच्छाओं को जन्म दे दिया और तुम पुनः उनकी पूर्ति में भागने लगे। क्या फलित इच्छाओं से तुम्हे कोई तृप्ति मिली? नही तथापि उन्होंने और अधिक प्राप्त करने की आशा जगायी। तुम और अधिक प्राप्त कर सकते हो, इस भाव से तुम एक नयी यात्रा पर निकल पड़े अर्थात् घोड़े की पीठ पर बैठ कर एक ही स्थान पर चक्कर लगाते हुए, तुम कहीं नही पहुँचते। कोई गन्तव्य नही उस घोड़े वाले झूले की भांति जिसमे एक ही स्थान पर घूमते हुए कहीं चलते रहने का भ्रम रहता है। किन्तु हम पहुँचते किसी भी लक्ष्य पर नही।
*....शेष कल....*
Vikash Kumar Snehi
(Art of living)
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