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Showing posts from January, 2019

भगवद गीता यथारूप - भूमिका  ( , Bhagavad Gita As It Is Hindi   (Gītā-māhātmya)

भगवद गीता यथारूप - भूमिका  ( , Bhagavad Gita As It Is Hindi   ( Gītā-māhātmya ) " Hare Krishna Hare Krishna , Krishna Krishna Hare Hare     Hare Ram Hare Ram , Ram Ram Hare Hare" गीता शास्त्रमिंद पुण्यं य: पठेत् प्रायत: पुमान् -यदि कोई भगवद्गीताके उपदेशों का पालन करे तो वह जीवन के दुखों तथा चिन्ताओं से मुक्त हो सकता है| भय शोकादिवर्जित: | वह इस जीवन में सारे भय से मुक्त हो जाएगा ओर उसका अगला जीवन आध्यात्मिक होगा ( गीता माहात्म्य  ९)| एक अन्य लाभ भी होता है : गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च| नव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च || "यदि कोई  भगवद्गीता को निष्ठा तथा गम्भीरता के साथ पढ़ता है तो भगवान् की कृपा से उसके सारे पूर्व दुष्कर्मों के फ़लों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता"( गीतामहात्म्य  २) | भगवान्  भगवद्गीता के अन्तिम अंश (१८.६६) में जोर देकर कहते है : सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरण व्रज | अहं त्वां सार्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच : || "सब धर्मो को त्याग कर एकमात्र मेरी ही शरण में आओ | मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा | तुम डरो मत |&qu

Śrīmad-Bhāgavatam ( Canto 1, Ch 2, Text 9,10)

Text 9 धर्मस्य ह्यापवर्ग्यस्यनार्थोऽर्थायोपकल्पते नार्थस्य धर्मैकान्तस्य कामोलाभाय हि स्मृतः ॥ १.२.९ ॥ dharmasya hy āpavargyasya nārtho ’rthāyopakalpate nārthasya dharmaikāntasya kāmo lābhāya hi smṛtaḥ Synonyms dharmasya  — occupational engagement;  hi  — certainly;  āpavargyasya  — ultimate liberation;  na  — not;  arthaḥ  — end;  arthāya  — for material gain;  upakalpate  — is meant for;  na  — neither;  arthasya  — of material gain;  dharma - eka - antasya — for one who is engaged in the ultimate occupational service;  kāmaḥ  — sense gratification;  lābhāya  — attainment of;  hi — exactly;  smṛtaḥ  — is described by the great sages. Translation All occupational engagements are certainly meant for ultimate liberation. They should never be performed for material gain. Furthermore, according to sages, one who is engaged in the ultimate occupational service should never use material gain to cultivate sense gratification. Text 10 कामस्य नेन्द्रियप्रीतिर्लाभो जीवेतयावता जीवस्

भगवद गीता यथारूप - भूमिका , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Introduction ....continue

भगवद गीता यथारूप - भूमिका , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Introduction ....continue " Hare Krishna Hare Krishna , Krishna Krishna Hare Hare     Hare Ram Hare Ram , Ram Ram Hare Hare" यह कोई कठिन पद्धति नहीं है, तो भी इसे किसी अनुभवी व्यक्ति से सीखना चाहिये |तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्-मनुष्य को चहिए कि जो पहले से अभ्यास कर रहाहो उसके पास जाये | मन सदैव इधर-उधर उडता रहता है, किन्तु मनुष्य को चाहिये कि मन को भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप पर या उनके नामोच्चारण पर केन्द्रित करने का अभ्यास करे | मन स्वभावत: चंचल है, इधर-उधर जाता रहता हे, लेकिन यह कृष्ण की ध्वनि पर स्थिर हो सकता हे | इस प्रकार मनुष्य को परमं पुरुषम् अर्थात दिव्यलोक में भगवान् का चिन्तन करना चाहिये और उनको प्राप्त करना चाहिए | चरम अनुभूति या चरम उपलब्धि के साधन  भगवद्गीता  मे बताये गये हैं , ओर इस ज्ञान के द्वार सब के लिए खुले हैं| किसी के लिए रोक-टोक नहीं है | सभी श्रेणी के लोग भगवान् कृष्ण का चिन्तन करके उनके पास पहुँच सकते हैं,क्योंकि उनकाश्रवण तथा चिन्तन हर एक के लिए सम्भव है| भगवान् आगे भी कहते हैं (

भगवद गीता यथारूप - भूमिका , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Introduction ....continue

भगवद गीता यथारूप - भूमिका , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Introduction ....continue " Hare Krishna Hare Krishna , Krishna Krishna Hare Hare     Hare Ram Hare Ram , Ram Ram Hare Hare" वे अर्जुन से उसके कर्म (वृत्ति) को त्याग कर केवल अपना स्मरण करने के लिए नहीं कहते । भगवान् कभी भी कोई अव्यवहारिक बात का परमार्श नहीं देते । इस जगत में शरीर के पालन हेतु मनुष्य को कर्म करना होता है । कर्म के अनुसार मानव समाज चार वर्णों में विभाजित है - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र । ब्राह्मण अथवा बुद्धिमान वर्ग एक प्रकार से कार्य करता है, क्षत्रिय या प्रशासक वर्ग दूसरी तरह से कार्य करता है ।इसी प्रकार वणिक वर्ग तथा श्रमिक वर्ग भी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं । मानव समाज में चाहे कोई श्रमिक हो, वणिक हो,प्रशासक हो या कि किसान हो, या फिर चाहे वह सर्वोच्च वर्ण का तथा साहित्यिक हो, वैज्ञानिक हो या धर्म शास्त्र ज्ञ हो, उसे अपने जीवन यापन के लिए कार्य करना होता है । अतएव भगवान् अर्जुन से कहते हैं कि उसे अपनी वृत्ति का त्याग नहीं करना है, अपितु वृत्ति में लगे रहकर कृष्ण का स्मरण करना चा

भगवद गीता यथारूप - भूमिका , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Introduction ....continue

भगवद गीता यथारूप - भूमिका , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Introduction ....continue " Hare Krishna Hare Krishna , Krishna Krishna Hare Hare     Hare Ram Hare Ram , Ram Ram Hare Hare" जीवन में हम या तो भौतिक या आध्यात्मिक शक्ति के विषय में सोचने के आदी हैं । हम अपने विचारों को भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति में किस प्रकार ले जा सकते हैं? ऐसे बहुत से साहित्य हैं- यथा समाचार पत्र, पत्रिकाएँ,उपन्यास आदि, जो हमारे विचारों को भौतिक शक्ति से भर देते हैं । इस समय हमें ऐसे साहित्य में लगे अपने चिन्तन को वैदिक साहित्य की ओर मोड़ना है । अतएव महर्षियों ने अनेक वैदिक ग्रंथ लिखे हैं, यथा पुराण । ये पुराण कल्पना प्रसूत नहीं हैं, अपितु ऐतिहासिक लेख हैं । चैतन्य-चरितामृत में (मध्य २०.१२२) निम्नलिखित कथन है :                     माया मुग्ध जीवेर नाहि स्वतः कृष्ण ज्ञान ।   जीवेरे कृपाय कैला कृष्ण वेड-पुराण ।। भुलक्कड जीवों या बद्ध जीवों ने परमेश्र्वर के साथ अपने सम्बन्ध को भुला दिया है और वे सब भौतिक कार्यों के विषय में सोचने में मग्न रहते हैं । इनकी चिन्तन शक्ति को आध्यात्मिक आकाश की ओ

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भगवद गीता यथारूप - भूमिका , Bhagavad Gita As It Is Hindi - Introduction ....continue " Hare Krishna Hare Krishna , Krishna Krishna Hare Hare     Hare Ram Hare Ram , Ram Ram Hare Hare" भगवद्गीता  में (८.६) उस सामान्य सिद्धान्त की भी व्याख्या है जो मृत्यु के समय ब्रह्म का चिन्तन करने से आध्यात्मिक धाम में प्रवेश करना सुगम बनाता है :  यं यं वापि स्मरन् भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्  |     तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः || “अपने इस शरीर को त्यागते समय मनुष्य जिस-जिस भाव का स्मरण करता है, वह अगले जन्म में उस-उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता है |” अब सर्व प्रथम हमें यह समझना चाहिए कि भौतिक प्रकृति परमेश्र्वर की एक शक्ति का प्रदर्शन है । विष्णु पुराण में (६.७.६९) भगवान् की समग्र शक्तियों का वर्णन हुआ है :       विष्णु शक्तिः परा प्रोक्ता क्षेत्र ज्ञाख्या तथा परा ।       अविद्याकर्मसंज्ञान्या तृतीया शक्तिरिष्यते ।। परमेश्र्वर की शक्तियाँ विविध तथा असंख्य हैं और वे हमारी बुद्धि के परे हैं,लेकिन बड़े-बड़े विद्वान मुनियों या मुक्तात्माओं ने इन शक्तियों का अध्ययन करके इन्हें